Thursday, January 20, 2011

आज शाम


आज शाम सूरज दिखा
सुर्ख लाल
जाने किसने पानी उड़ेल दिया था उस पर
सुर्ख लाली उसके दायरे से फ़ैल कर बाहर जा रही थी
न जाने किस बादल की शरारत थी ये
वो जो खुद उस रंग में रंग गया था
या कोई और जो पानी गिराकर उड़ गया था
शरारत किसी की भी हो पर सूरज नाराज नहीं था
वो तो अपना रंग खोकर भी मुस्कुरा रहा था
आज शाम सूरज दिखा
सुर्ख लाल...

3 comments:

  1. rhyming करना छोड़ दिया आपने ... कविता अच्छी है सूरज को भी बहुत पसंद आयेगी

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  2. .



    प्रिय तृप्ति जी
    सस्नेह अभिवादन !

    आपके ब्लॉग पर पहली बार पहुंचा हूं , बहुत ख़ूबसूरत है !
    पोस्ट्स भी जितनी देखी … नई-पुरानी ; अच्छी लगीं ।

    कवि-शायर-चित्रकार होने के कारण इस पोस्ट की कविता और चित्र कुछ ज़्यादा ही भाने के कारण कमेंट यहां पब्लिश कर रहा हूं …

    सुंदर मनोभावों को संतुलित शब्दों में उकेरने के लिए बधाई !

    … और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए मंगलकामनाएं हैं !

    नवरात्रि की शुभकामनाएं !

    साथ ही…

    नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

    चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
    संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!

    *नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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