Monday, February 3, 2014

वक्त

वक्त,
तुम कहीं तो रुकते होगे सुस्ताने को
बेफिकर, आराम फरमाने को
नींद की गोद में सो जाने को
ख्वाब दो-चार पकड़ लाने को
वक्त, तुम कभी तो थकते होगे...

4 फरवरी 2014 (5:10 am)

Friday, January 3, 2014

बोली

तुम्हारी जान पे आती है तो सांसें बचाते हो,
तुम अपनी आन को ऐसे में किस तरहा दबाते हो,
अरे इतना तो सोचो घर नहीं होगा तो क्या होगा!
देश बाजार में बैठा है, तुम बोली लगाते हो...