सब बातें करते हैं, हँसते भी हैं
मजाक का सिलसिला भी कुछ-कुछ वैसा ही है
जन्माष्टमी मनाई है, ईद भी मना रहे हैं
मगर ये शहर खोखला हो चुका है
आत्मा मर चुकी है या बेहोश है
नहीं जानती इतना ज्यादा
मगर दोनों ही हालात में ये शहर बस एक शरीर ही बचा है
इस शरीर को बचाने की लोग कोशिश कर रहे हैं
या ये बस एक दिखावा भर है
नहीं जानती इतना ज्यादा
मगर दोनों ही हालात में
लोगों को हालत के भारीपन का अंदाजा है
पता नहीं ये घाव कब भरेंगे या शक है क़ि भरेंगे ?
मगर दोनों ही हालात में ज़ख़्मी तो हुआ है शहर
लोग कपड़े खरीद रहे हैं और मिठाइयाँ भी
साथ में कर्फ्यू पास बनवाने के जुगाड़ में हैं
जैसे मान बैठे हों क़ि इस त्योहार के बाद भी दंगा हो जायेगा
इस बार ये शहर जला तो राख हो जायेगा, क्योंकि
ये शहर खोखला हो चुका है...