Friday, September 10, 2010

ये खोखला शहर...


सब बातें करते हैं, हँसते भी हैं
मजाक का सिलसिला भी कुछ-कुछ वैसा ही है
जन्माष्टमी मनाई है, ईद भी मना रहे हैं
मगर ये शहर खोखला हो चुका है
आत्मा मर चुकी है या बेहोश है
नहीं जानती इतना ज्यादा
मगर दोनों ही हालात में ये शहर बस एक शरीर ही बचा है
इस शरीर को बचाने की लोग कोशिश कर रहे हैं
या ये बस एक दिखावा भर है
नहीं जानती इतना ज्यादा
मगर दोनों ही हालात  में
लोगों को हालत के भारीपन का अंदाजा है
पता नहीं ये घाव कब भरेंगे या शक है क़ि भरेंगे ?
मगर दोनों ही हालात में ज़ख़्मी तो हुआ है शहर
लोग कपड़े खरीद रहे हैं और मिठाइयाँ भी
साथ में कर्फ्यू पास बनवाने के जुगाड़ में हैं
जैसे मान बैठे हों क़ि इस त्योहार के बाद भी दंगा हो जायेगा
इस बार ये शहर जला तो राख हो जायेगा, क्योंकि
ये शहर खोखला हो चुका है...

5 comments:

  1. dost koi bhi shahar kabhi khokla nahi hota wahan rehne wale log shar ko khokla ya khoobsurat banaten hai. islia hum tumhari baat se ittefaq nahi rakhte.jalbazi me kisi bhi bare me ray kayam nahi karna chahiye. tume poocha islia bataya. tumhare shabdon se jahir ye anubhav bol raha hai.kher umhari koshish acchi hai. aur behtar karo.

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  2. अच्छी कोशिश है... लेकिन ध्यान रखें आप जो कह रहे हैं उसका इशारा भी साफ और सीधा हो

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  3. शहर का खोखला होना तो महज इक इशारा है. खोखले तो लोग हो गए हैं जो आमादा है एक दुसरे के लिए नफरत की आग सुलगाने में, और इंसानियत को जिन्दा जलने में. जिस दिन इन्सान कूच कर जायेंगे उन गाँव और शहरों से जहाँ रौनक है अभी, हर गली हर मोहल्ला वीरान सा हो जाएगा. मगर उम्मीद है की अभी भी जिन्दा हैं, ऐसे लोग उस शहर में जिन्हें जिन्हें कचोट है इसका खोखला होना. क्यूंकि खोखलापन गवारा नहीं उन्हें. वो तो फितरतन मुकम्मल जिन्दगी के कद्रदान हैं.

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